ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का निधन; 88 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहा, इन गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे, PM मोदी ने जताया दुख

Pope Francis Death in Vatican City The World Mourns

Pope Francis Death in Vatican City The World Mourns

Pope Francis Death News: कैथोलिक ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का निधन हो गया है। पोप फ्रांसिस ने 88 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्होंने सोमवार (21 अप्रैल) सुबह वेटिकन सिटी में अंतिम सांस ली। पोप फ्रांसिस के निधन की खबर मिलते ही दुनिया भर के ईसाई समुदाय के लोगों में शोक की लहर दौड़ गई। लोग पोप फ्रांसिस के लिए प्रार्थना करने के लिए जुटना शुरू हो गए हैं। वहीं साथ ही दुनिया भर के नेता और कई दिग्गज हस्तियों की तरफ से पोप फ्रांसिस के निधन पर दुख व्यक्त किया जा रहा है।

इधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पोप फ्रांसिस के निधन पर शोक व्यक्त किया है। पीएम मोदी ने कहा, "पोप फ्रांसिस के निधन से मुझे गहरा दुख हुआ है। दुख और स्मरण की इस घड़ी में, वैश्विक कैथोलिक समुदाय के प्रति मेरी हार्दिक संवेदना है। पोप फ्रांसिस को दुनिया भर के लाखों लोग हमेशा करुणा, विनम्रता और आध्यात्मिक साहस के प्रतीक के रूप में याद रखेंगे। छोटी उम्र से ही उन्होंने प्रभु मसीह के आदर्शों को साकार करने के लिए खुद को समर्पित कर दिया था. उन्होंने गरीबों और वंचितों की लगन से सेवा की। जो लोग पीड़ित थे, उनके लिए उन्होंने आशा की भावना जगाई।

गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे पोप फ्रांसिस

रोमन कैथोलिक चर्च के प्रमुख पोप फ्रांसिस पिछले कई महीनों से वे गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। उन्हें 14 फरवरी को रोम के जेमेली अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें फेफड़ों और किडनी में इन्फेक्शन की समस्या थी। इसके साथ ही उनका उनका निमोनिया और एनीमिया का इलाज भी चल रहा था। इलाज के दौरान एक बार तो पोप फ्रांसिस को कोई फायदा न मिलते देख डॉक्टरों ने हाथ भी खड़े कर दिये थे लेकिन बाद में पोप फ्रांसिस की हालत में सुधार देखा गया। इस बीच उन्हें 14 मार्च को डिस्चार्ज भी किया गया। लेकिन वह ठीक नहीं हो पाये।

बताया जाता है कि, पोप फ्रांसिस लगभग 1300 साल में पहले ऐसे गैर-यूरोपीय थे, जिन्हें पोप चुना गया था और वह कैथोलिक धर्म के सर्वोच्च पद पर पहुंचे। इससे पहले पोप फ्रांसिस अर्जेंटीना के एक जेसुइट पादरी थे, वो 2013 में रोमन कैथोलिक चर्च के 266वें पोप बने थे। उन्हें पोप बेनेडिक्ट सोलहवें का उत्तराधिकारी चुना गया था। पोप फ्रांसिस का जन्म 17 दिसम्बर 1936 को अर्जेंटीना के फ्लोरेंस शहर में हुआ था। पोप बनने से पहले उन्होंने जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो नाम से जाना जाता था।

बातया जाता है कि, पोप फ्रांसिस के दादा-दादी तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी से बचने के लिए इटली छोड़कर अर्जेंटीना चले गए थे। पोप ने अपना ज्यादातर जीवन अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में बिताया। उन्होंने ब्यूनस आयर्स यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र और धर्मशास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की थी। साल 1998 में वे ब्यूनस आयर्स के आर्कबिशप बने थे। साल 2001 में पोप जॉन पॉल सेकेंड ने उन्हें कार्डिनल बनाया था।

पोप फ्रांसिस ने कैथोलिक धर्म के सर्वोच्च पद पर रहते हुए समलैंगिक व्यक्तियों के चर्च आने, सेम-सेक्स कपल्स को आशीर्वाद देने, पुनर्विवाह को धामिक मंजूरी देने जैसे बड़े फैसले लिए। उन्होंने चर्चों में बच्चों के यौन शोषण पर सार्वजनिक माफी भी मांगी थी। चर्च के पादरियों की तरफ से किए गए इस अपराध को उन्होंने नैतिक मूल्यों की गिरावट कहा था। इससे पहले तक किसी पोप की तरफ से इस मामले पर प्रतिक्रिया नहीं देने की वजह से वेटिकन की आलोचना की जाती थी।